प्रसंगवश यह भी जान लिया जाय कि भारत की आजादी (या
सत्ता-हस्तांतरण) के लिए 15 अगस्त की तारीख को चुना जाना किसी सोच-विचार का परिणाम
नहीं है। 3 जून 1947 को सभी भारतीय राजनेता भारत के बँटवारे के लिए राजी हो जाते
हैं और इसके कुछ ही दिनों बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में जब माउण्टबेटन से पूछा
जाता है कि क्या उन्होंने कोई तारीख भी सोच रखी है इसके लिए, तो उनके मुँह से अचानक ही 15
अगस्त की तारीख निकल जाती है। दरअसल, इसी दिन करीब दो साल पहले जापान
ने उनके सामने आत्मसमर्पण किया था, तो यह तारीख उनके लिए भाग्यशाली
थी। वैसे, योजना जून’48 तक भारत को सत्ता-हस्तांतरित
करने की थी। फरवरी’ 47 में इसी योजना को अंजाम देने के लिए माउण्टबेटन को अन्तिम
वायसराय बनाकर भेजा गया था; मगर साथ ही, उन्हें कोई भी फैसला लेने की छूट भी दी गयी थी- एटली की तरफ से।
भारत आकर माउण्टबेटन महसूस करते हैं कि अँग्रेज यहाँ ‘ज्वालामुखी के कगार’ पर, एक ‘फ्यूज्ड बम’ पर बैठे हैं, वे जितनी जल्दी यहाँ से निकल
जायें, उतना अच्छा! ...तो एक
प्रेस कॉन्फ्रेन्स में अचानक ही सत्ता-हस्तांतरण की तारीख की घोषणा करते हुए वे एक
तीर से दो निशाने साध लेते हैं- 1. अपने जीवन की भाग्यशाली तारीख को वे भारत का ‘स्वतंत्रता दिवस’ बना देते हैं; और 2. नेताजी के कारण भारत और
जापान के बीच मैत्री कायम होने की जो सम्भावना थी, उसके रास्ते पर एक रोड़ा अटका
देते हैं- 15 अगस्त को जब जापानी अपने जख्मों को सहला रहे होंगे, तब भारतीय ‘आजादी का जश्न’ मनाया करेंगे!)
(लेखक की पुस्तक ‘नाज़-ए-हिन्द सुभाष’ के अध्याय 5.3 ‘ऐसे आयी आजादी’ की पाद-टिप्पणी।)
(लेखक की पुस्तक ‘नाज़-ए-हिन्द सुभाष’ के अध्याय 5.3 ‘ऐसे आयी आजादी’ की पाद-टिप्पणी।)
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