1995 से मैंने देश की विभिन्न
समस्याओं के समाधान के बारे में लिखना शुरु किया था, जिसे तीन साल बाद मैंने घोषणापत्र का रुप दिया था। 2003 में इस घोषणापत्र को एक
पुस्तिका के रुप में प्रकाशित करवाया था; 2009
में इण्टरनेट पर डाला था इसे एक ब्लॉग के रुप में, और अब 2016 में इसे ‘ई-बुक’ के रुप में प्रस्तुत कर रहा हूँ।
21 वर्षों के लम्बे अन्तराल में इस
घोषणापत्र में बहुत सारे संशोधन,
सम्पादन, परिवर्तन हुए हैं। पर अब मुझे ऐसा लगता है कि इसने अपना अन्तिम एवं
परिपक्व स्वरुप प्राप्त कर लिया है- बेशक, मेरी सामर्थ्य के
अनुसार। मेरी ओर से इसे देशवासियों तक पहुँचाने की यह जो कोशिश हो रही है, यह भी अब मेरा आखिरी प्रयास है।
अगर देशवासियों को इस घोषणापत्र
का मर्म समझ में आ जाता है, तो अच्छी बात होगी; वर्ना मैं इसी बात से सन्तोष कर लूँगा कि मैंने देश के प्रति अपना
फर्ज अदा कर दिया और मैं अपनी पसन्द के कुछ दूसरे कामों में रम जाऊँगा... अपने देश
को उसकी नियति के भरोसे छोड़कर।
अन्त में मैं इतना जरुर स्पष्ट
करना चाहूँगा कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में बिना कोई बदलाव लाये, या इस घोषणापत्र की बातों को बिना अपनाये, यह देश अगर खुशहाल, स्वावलम्बी और शक्तिशाली
बन जाता है, तो इस देश में मुझसे ज्यादा खुश
कोई और नहीं हो सकता!
इति,
-जयदीप शेखर
विजयादशमी, 2073
(11 अक्तूबर, 2016)
***
पुनश्च:
मार्च'2020 में मैं इस घोषणापत्र का परिमार्जित संस्करण प्रस्तुत कर रहा हूँ। ऐसा लगता है कि 'कोरोना काल' के बाद एक नयी व्यवस्था की जरूरत सभी महसूस करेंगे- इसे ध्यान में रखते हुए।
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