देश में फसलों की सरकारी खरीद की जो व्यवस्था कायम की जायेगी, उसका विवरण निम्न प्रकार से हैः
क) राष्ट्रीय सरकार जिला स्तर पर फसल खरीद सह भण्डारण केन्द्र स्थापित करेगी और प्रतिवर्ष देश में उपजाये जाने वाली फसलों का उचित क्रय व विक्रय मूल्य निर्धारित करेगी। (विक्रय मूल्य दो प्रकार के हो सकते हैं- व्यापारियों या व्यापारिक संस्थाओं के लिए अलग तथा जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए अलग।)
ख) जिले के अन्दर पैदावार की स्थिति को देखते हुए जिलाधिकारी को यह विवेकाधिकार प्राप्त होगा कि वह निर्धारित क्रय मूल्य में 10 प्रतिशत तक बढ़ोतरी या कमी कर सके।
ग) राज्य सरकार प्रखण्ड स्तर पर ऐसे ही फसल खरीद सह भण्डारण केन्द्र स्थापित करेगी और राज्य में उपजाये जाने वाली सभी फसलों के लिए उचित क्रय व विक्रय मूल्य निर्धारित करेगी। (यहाँ भी विक्रय मूल्य दो प्रकार के हो सकते हैं- व्यापारियों या व्यापारिक संस्थाओं के लिए अलग तथा जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए अलग।)
घ) प्रखण्ड के अन्दर पैदावार की स्थिति को देखते हुए प्रखण्ड अधिकारी अपने विवेक से उचित क्रय मूल्य में 5 प्रतिशत तक बढ़ोतरी या कमी कर सकेंगे।
ङ) जाहिर है कि ‘बम्पर’ उत्पादन की स्थिति में उचित क्रय मूल्य में कमी तथा किसी प्राकृतिक आपदा से पैदावार को नुकसान पहुँचने की दशा में उचित क्रय मूल्य में बढ़ोतरी की जा सकेगी।
च) सरकारी खरीद केन्द्रों में फसलों की खरीद की दो प्रक्रिया होगीः
1. व्यवसायिक फसलों के मामले में ‘व्यक्तिगत’ या ‘प्रत्यक्ष’ खरीद, यानि सरकार सीधे किसानों से उपज खरीदेगी और
2. खाद्य फसलों (अनाज, दलहन, तेलहन) के मामले में ‘सामूहिक’ या ‘अप्रत्यक्ष’ खरीद, यानि सरकार ग्राम-पंचायतों से उपज खरीदेगी।
छ) ग्राम-पंचायत अपने किसानों की व्यवसायिक फसलों को एकत्र नहीं करेगी, वह सिर्फ खाद्य फसलें अपने किसानों से एकत्र करेगी और इस दौरान वह एक ‘अधिकतम सीमा’ भी निर्धारित करेगी, अर्थात एक किसान अपनी फसल की ‘असीमित’ मात्रा ग्राम-पंचायत के भण्डार में नहीं जमा कर सकेगा।
ज) जाहिर है कि अगर कोई ‘बड़ा’ किसान निर्धारित सीमा से ज्यादा फसल पंचायत के भण्डार में जमा करना चाहेगा, तब उसे गाँव के भूमिहीन, सीमान्त एवं छोटे किसान और बटाईदारों का सहयोग लेना होगा (यानि उनके नाम से फसल जमा करने होंगे) और यह व्यवस्था ‘मुफ्त’ नहीं होगी, बड़े किसान को 10 प्रतिशत करके हिस्सा देना होगा सहयोग करने वालों को।
झ) सरकारी खरीद केन्द्र में फसल बेचते समय ग्राम-पंचायत फसल जमा करने वाले किसानों के नाम, उनकी बैंक खाता संख्या और उनके द्वारा जमा की गयी फसल की मात्रा की सूची भी सौंपेगा, इस सूची के आधार पर ही सरकारों द्वारा फसल के मूल्य का भुगतान- सीधे किसानों के बैंक खातों में- किया जायेगा।
ञ) ग्राम-पंचायत के पास खाद्य फसलों का जो भण्डार जमा होगा, उसका 7 प्रतिशत हिस्सा वह अपने सामुदायिक भण्डार गृह में जमा कर लेगी, जिसका उपयोग गाँव के ‘लंगर’ में होगा (कृपया क्रमांक 20.5 तथा परिशिष्ट ‘ऊ’ देखें) और बाकी 93 प्रतिशत हिस्सा वह सरकारी खरीद केन्द्र में, या बाजार में ले जाकर बेचेगी; अर्थात् एक किसान अगर 100 किलो अनाज पंचायत के पास जमा करता है, तो उसे 93 किलो अनाज का मूल्य प्राप्त होगा, बाकी 7 किलो का उपयोग गाँव में सालभर चलने वाले ‘लंगर’ (दोनों समय मुफ्त भोजन- किसी के भी लिए) में होगा।
पूरी स्थिति कुछ निम्न प्रकार से बनेगी-
ट) प्रत्येक किसान के पास अपनी ‘व्यवसायिक’ फसल को बेचने के लिए तीन विकल्प मौजूद होंगेः
1. वह जिला खरीद केन्द्र पर जाकर राष्ट्रीय सरकार को उसके द्वारा निर्धारित मूल्य पर बेचे, या
2. वह प्रखण्ड खरीद केन्द्र पर जाकर राज्य सरकार को उसके द्वारा निर्धारित मूल्य पर बेचे, या फिर
3. वह बाजार में जाकर व्यापारी को, या फैक्ट्री को बाजार मूल्य पर बेचे।
(यह आशा रखी जायेगी कि ऐसे किसान विक्रय मूल्य का 7 प्रतिशत हिस्सा ईमानदारीपूर्वक ग्राम-पंचायत के कोष में जमा करेंगे, ऐसा न करने वालों का सामाजिक मान-सम्मान घट जाना चाहिए।)
ठ) खाद्य फसलों के मामले में भी किसान के पास तीन विकल्प होंगेः
1. वह ग्राम-पंचायत के भण्डार गृह में अपनी फसल जमा करे, या
2. वह बाजार जाकर व्यापारी या व्यापारिक संस्था को बाजार मूल्य पर बेचे, या फिर
3. वह दोनों काम करे, पंचायत द्वारा निर्धारित मात्रा तक फसल पंचायत के पास जमा करे और बाकी बाजार में बेच दे।
(जो किसान बाजार में अपनी फसल को बेचेंगे, उन्हें ईमानदारी से विक्रय मूल्य का 7 प्रतिशत हिस्सा ग्राम-पंचायत के पास जमा करना चाहिए, अन्यथा गाँव में उसका सम्मान घट जाना चाहिए।)
ड) ग्राम-पंचायत के भण्डार गृह में में खाद्य फसलों का भण्डारण हो जाने के बाद ‘ग्राम-सभा’ (क्रमांक- 20.2 से 20.4) की बैठक बुलायी जायेगी और फसल बिक्री के लिए आम सहमति या बहुमत से निम्न चार में से कोई एक विकल्प चुना जायेगाः
1. फसल को जिला खरीद केन्द्र पर ले जाकर राष्ट्रीय सरकार को उसके द्वारा निर्धारित मूल्य पर बेचना, या
2. फसल को प्रखण्ड खरीद केन्द्र पर ले जाकर राज्य सरकार को उसके द्वारा निर्धारित मूल्य पर बेचना, या
3. फसल को व्यापारी या व्यापारिक संस्था को बाजार मूल्य पर बेचना (ऐसे में, हो सकता है खरीदार स्वयं गाँव आकर फसल को उठा ले जायें और ढुलाई का खर्च बच जाय), या फिर
4. फसल को भण्डार में रहने दिया जाय- कुछ समय बाद जब बाजार मूल्य चढ़े, तब इसे बाजार मूल्य पर बेचना।
(जहाँ तक ढुलाई की खर्च की बात है, ग्राम-पंचायत को अपने कोष से इसे वहन करना चाहिए।)
अन्त में-
ढ) कहने की आवश्यकता नहीं कि व्यापारी और व्यापारिक संस्थाएं सरकारी उचित क्रय मूल्य से ज्यादा मूल्य देकर सीधे किसानों से फसलें खरीदने के लिए स्वतंत्र होंगी, मगर खाद्य-फसलों के मामले में इनके लिए एक 'अधिकतम' सीमा निर्धारित रहेगी।
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