प्रस्तुत घोषणापत्र में प्रतिरक्षा के क्षेत्र से जुड़े सभी
साजो-सामान देश के अन्दर ही बनाने का जिक्र हुआ है। इसी सन्दर्भ में एक उदाहरण
दिया जा रहा है कि किस प्रकार स्वदेशी युद्धक विमान बनाये जा सकते हैंः-
क) चरण-1: सबसे पहले गर्म हवा से उड़ने वाले गुब्बारे बनाये जायें।
इसके भी कई उपचरण हों। पहले छोटे गुब्बारे बनाये जायें तथा बाद में 10, 20, 40 लोगों को लेकर दो-एक घण्टों
तक उड़ने की काबिलियत रखने वाले गुब्बारे बनाये जायें। इन गुब्बारा-विमानों का
उपयोग ‘पर्यटन उद्योग’ में किया जा सकता है- जैसे, छतरपुर से खजुराहो तक जाने-आने
के लिए। (कहते हैं कि खजुराहो हवाई अड्डे पर आने-जाने वाले विमानों के कम्पन से
मन्दिरों को नुकसान पहुँचता है।)
ख) चरण-2: वैसे युद्धक विमानों का निर्माण किया जाय, जिनका उपयोग ‘प्रथम विश्वयुद्ध’ में हुआ था। ऐसे विमान बनाना कोई
मुश्किल काम नहीं है।
ग) चरण-3: वैसे विमानों का निर्माण किया जाय, जिनका उपयोग ‘द्वितीय विश्वयुद्ध’ में हुआ था।
घ) चरण-4: हल्के जेट युद्धक विमान बनाये जायें।
ङ) चरण-5: आधुनिक किस्म के युद्धक विमानों का निर्माण शुरु कर
दिया जाय।
***
स्वदेशी युद्धक विमानों के बेड़े का एक काल्पनिक खाका भी प्रस्तुत
हैः
क) युधिष्ठिरः ‘टोही’ विमान।
ख) अर्जुनः मुख्य युद्धक विमान।
ग) कर्णः मुख्य युद्धक विमान।
(यहाँ स्पष्ट कर जाय कि ‘अर्जुन’ तथा ‘कर्ण’ विमानों के स्क्वाड्रन तो
अलग-अलग होंगे ही, उनकी निर्माण इकाई भी
अलग-अलग होनी चाहिए। दोनों स्क्वाड्रनों के विमानचालकों तथा दोनों इकाईयों के
अभियन्ताओं के बीच ‘श्रेष्ठता’ की ‘मित्रवत्’ ‘जंग’ सदैव जारी रहनी चाहिए!)
घ) भीमः मुख्य माल/यात्री वाहक विमान।
ङ) नकुलः युद्धक हेलीकॉप्टर।
च) सहदेवः माल/यात्री वाहक हेलीकॉप्टर।
छ) अभिमन्युः सहायक युद्धक विमान।
ज) घटोत्कचः सहायक माल/यात्री वाहक विमान।
झ) भीष्मः प्रशिक्षक विमान- उच्च श्रेणी (जेट)।
ञ) द्रोणः प्रशिक्षक विमान- मध्यम श्रेणी (प्रोपेलर से जेट की ओर बढ़ने
के लिए)।
ट) एकलव्यः प्रशिक्षक विमान- प्राथमिक श्रेणी (बेशक, प्रोपेलर किस्म)।
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