40.1 देश के सभी सामाजिक/सांस्कृतिक/धार्मिक/महिला संगठनों के प्रतिनिधियों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर एक त्रैमासिक अधिवेशन बुलाया जायेगा, जिसकी अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के एकाधिक न्यायाधीशगण करेंगे।
40.2 समाज में विभिन्न तरीके से फैल रही अश्लीलता एवं कुरीतियों पर इस अधिवेशन में चर्चा होगी तथा सर्वसम्मति या बहुमत से इन्हें मिटाने के लिए कुछ निर्णय लिए जायेंगे।
40.3 अधिवेशन में लिये गये निर्णयों की समीक्षा करने के बाद न्यायाधीशों द्वारा अन्तिम निर्णय लिया जायेगा।
40.4 अधिवेशन के निर्णय के रूप मे लगाये गये प्रतिबन्धों और जुर्मानों का दोषी ठहराये गये व्यक्तियों/संस्थाओं द्वारा पालन किया जाएगा।
40.5 अगर किसी निर्णय से विवाद पैदा हो जाय, तो उसपर सर्वोच्च न्यायालय तो विचार करेगा ही, उसपर संसद में भी विचार होगा और आवश्यकतानुसार कानून बनाया जायेगा।
40.6 उदाहरण के लिए- विवाह समारोहों में खर्च की एक अधिकतम सीमा इस प्रकार से तय की जा सकती है कि समारोह में परिवार अपनी सम्मिलित वार्षिक आय से ज्यादा खर्च न करे; इसी प्रकार, ‘मृत्युभोज’ को प्रतिबन्धित किया जा सकता है; पुरोहित बनने के लिए ‘जन्म-आधारित’ व्यवस्था के स्थान पर ‘ज्ञान-आधारित’ एक व्यवस्था कायम की जा सकती है; सभी धार्मिक स्थलों के आय-व्यय के ब्यौरों को पारदर्शी बनाया जा सकता है; फूहड़ एवं अश्लील गानों, फिल्मों, विज्ञापनों पर रोक लगायी जा सकती है; इत्यादि-इत्यादि।
40.2 समाज में विभिन्न तरीके से फैल रही अश्लीलता एवं कुरीतियों पर इस अधिवेशन में चर्चा होगी तथा सर्वसम्मति या बहुमत से इन्हें मिटाने के लिए कुछ निर्णय लिए जायेंगे।
40.3 अधिवेशन में लिये गये निर्णयों की समीक्षा करने के बाद न्यायाधीशों द्वारा अन्तिम निर्णय लिया जायेगा।
40.4 अधिवेशन के निर्णय के रूप मे लगाये गये प्रतिबन्धों और जुर्मानों का दोषी ठहराये गये व्यक्तियों/संस्थाओं द्वारा पालन किया जाएगा।
40.5 अगर किसी निर्णय से विवाद पैदा हो जाय, तो उसपर सर्वोच्च न्यायालय तो विचार करेगा ही, उसपर संसद में भी विचार होगा और आवश्यकतानुसार कानून बनाया जायेगा।
40.6 उदाहरण के लिए- विवाह समारोहों में खर्च की एक अधिकतम सीमा इस प्रकार से तय की जा सकती है कि समारोह में परिवार अपनी सम्मिलित वार्षिक आय से ज्यादा खर्च न करे; इसी प्रकार, ‘मृत्युभोज’ को प्रतिबन्धित किया जा सकता है; पुरोहित बनने के लिए ‘जन्म-आधारित’ व्यवस्था के स्थान पर ‘ज्ञान-आधारित’ एक व्यवस्था कायम की जा सकती है; सभी धार्मिक स्थलों के आय-व्यय के ब्यौरों को पारदर्शी बनाया जा सकता है; फूहड़ एवं अश्लील गानों, फिल्मों, विज्ञापनों पर रोक लगायी जा सकती है; इत्यादि-इत्यादि।
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