अगर नेताजी सुभाष “दिल्ली पहुँच” जाते, तो जो तीन काम वे सबसे पहले करते, वे होते- 1. “औपनिवेशिक” शासन व्यवस्था को पूरी तरह से हटाकर समाजवादी किस्म की एक भारतीय व्यवस्था कायम करना, 2. देश के गद्दारों को राजनीति की मुख्यधारा से अलग करना (शायद वे उन्हें निर्वासित ही कर देते) और 3. भारतीय प्रशासन, पुलिस एवं सेना के सिर से “ब्रिटिश हैंग-ओवर” का भूत (अधिकारियों द्वारा जनता एवं मातहतों को गुलाम समझने की मानसिकता) उतारना। इसके बाद वे निम्न पाँच काम करते- 1. दस (या बीस) वर्षों के अन्दर हर भारतीय को सुसभ्य, सुशिक्षित, सुस्वस्थ एवं सुसंस्कृत बनाना, 2. हर हाथ को रोजगार देते हुए दबे-कुचले लोगों के जीवन स्तर को शालीन बनाना, 3. गरीबी-अमीरी के बीच की खाई को एक जायज सीमा के अन्दर नियंत्रित रखना, 4. देशवासियों को राजनीतिक रूप से इतना जागरूक बनाना कि शासन-प्रशासन के लोग उन पर हावी न हो सकें और 5. प्रत्येक देशवासी के अन्दर “भारतीयता” के अहसास को जगाना। इसके बाद ही वे नागरिकों के हाथों में “मताधिकार” का अस्त्र सौंपते। देखा जाय, तो यह अवधारणा आज भी प्रासंगिक है और इसी आधार पर यह दसवर्षीय “भारतीय राष्ट्रीय सरकार” का घोषणापत्र प्रस्तुत किया जा रहा है।

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

परिशिष्ट- ‘आ’: 15 अगस्त तिथि की वास्तविकता

 

प्रसंगवश यह भी जान लिया जाय कि भारत की आजादी (या सत्ता-हस्तांतरण) के लिए 15 अगस्त की तारीख को चुना जाना किसी सोच-विचार का परिणाम नहीं है। फरवरी1947 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली भारत छोड़ने का निर्णय लेते हैं, जून 1948 तक सत्ता-हस्तांतरणको पूरा करने की घोषणा करते हैं और इस काम के लिए माउण्टबेटन को भारत का अन्तिम वायसराय नियुक्त करते हैं। माउण्टबेटन को परिस्थितियों के अनुसार कोई भी निर्णय लेने की आजादी दी जाती है। भारत आकर माउण्टबेटन महसूस करते हैं कि अँग्रेज यहाँ ज्वालामुखी के कगारपर, एक फ्यूज्ड बमपर बैठे हैं, वे जितनी जल्दी यहाँ से निकल जायें, उतना अच्छा! माउण्टबेटन के साथ भारतीय राजनेताओं की बैठकों का दौर शुरू होता है। 3 जून 1947 को सभी भारतीय राजनेता भारत के बँटवारे के लिए राजी हो जाते हैं। इसके कुछ ही दिनों बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में जब माउण्टबेटन से पूछा जाता है कि क्या उन्होंने कोई तारीख भी सोच रखी है इसके लिए, तो उनके मुँह से अचानक ही 15 अगस्त की तारीख निकल जाती है। दरअसल, इसी दिन करीब दो साल पहले जापान ने उनके सामने आत्मसमर्पण किया था, तो यह तारीख उनके लिए भाग्यशाली थी। ...तो एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में अचानक ही सत्ता-हस्तांतरण की तारीख की घोषणा करते हुए वे एक तीर से दो निशाने साध लेते हैं— 1. अपने जीवन की भाग्यशाली तारीख को वे भारत का स्वतंत्रता दिवसबना देते हैं और 2. नेताजी के कारण भारत और जापान के बीच भविष्य में मैत्री कायम होने की जो सम्भावना थी, उसके रास्ते पर एक रोड़ा अटका देते हैं— 15 अगस्त को जब जापानी अपनी पराजय के जख्मों को सहला रहे होंगे, तब भारतीय आजादी का जश्नमनाया करेंगे!

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