यह घोषणापत्र क्या है?
यह घोषणापत्र देश की प्रायः सभी समस्याओं का विन्दुवार (To the Point) समाधान सुझाता है और समग्र रूप से खुशहाल, स्वावलम्बी और शक्तिशाली भारत के निर्माण का खाका (Blueprint) प्रस्तुत करता है।
यह खाका लागू कैसे होगा?
इसके लिए देश में 10 वर्षों के लिए एक नये प्रकार की शासन-प्रणाली कायम करनी होगी, जिसका नाम ‘भारतीय राष्ट्रीय सरकार’ रखा जा रहा है। इस शासन-प्रणाली के तीन प्रमुख अंग होंगे- 1. प्रधानमंत्री (Prime Minister), 2. मंत्री-परिषद (Cabinet) और 3. मंत्री-सभा (Council)। तीनों की व्याख्या नीचे दी जा रही हैः
प्रधानमंत्रीः एक जागरुक आम नागरिक को दस वर्षों के लिए देश का प्रधानमंत्री नियुक्त करना होगा। विद्वानों की एक मंत्री-परिषद एवं मंत्री-सभा के मार्गदर्शन एवं नियंत्रण में काम करते हुए वह प्रधानमंत्री प्रस्तुत घोषणापत्र को लागू करेगा और देश को खुशहाल, स्वावलम्बी और शक्तिशाली राष्ट्र बनायेगा। दस वर्षों के बाद एक आदर्श चुनाव का अयोजन करवा कर वह देश में सही मायने में एक ‘लोक’-तांत्रिक या ‘जन’-तांत्रिक व्यवस्था कायम करेगा— वैसे, लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुरुआत पाँचवें वर्ष से ही हो जायेगी (कृपया घोषणा क्रमांक- 1.7 देखें)।
जिस नागरिक को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जायेगा, उसमें कुछ मानवोचित एवं नायकोचित गुण तो होने ही चाहिए, साथ ही, निम्न तीन गुण जरूर होने चाहिए- 1. देशभक्ति, 2. ईमानदारी और 3. साहस।
मंत्री-परिषदः प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन तथा उस पर नियंत्रण रखने के लिए एक चौदह-सदस्यीय मंत्री-परिषद का गठन किया जायेगा। मंत्री-परिषद में निम्न 14 विषयों/क्षेत्रों के विशेषज्ञ/विद्वान मौजूद होंगे- 1. किसानी, 2. मजदूरी, 3. खेल-कूद, 4. विज्ञान, 5. संस्कृति, 6. शिक्षा, 7. नारी-सशक्तिकरण, 8. विदेश-नीति, 9. राष्ट्रीय सुरक्षा, 10. संविधान/न्याय, 11. अर्थनीति, 12. पर्यावरण, 13. समाजसेवा और 14. लेखन/पत्रकारिता।
मंत्री-परिषद के लिए जिन विशेषज्ञ/विद्वानों का चयन किया जायेगा, वे देश/समाज के वरिष्ठ, सम्मानित एवं सच्चरित्र नागरिक होंगे। इनके चयन के लिए देश के सभी भाषाओं के अखबारों के सम्पादकों से सुझाव मँगवाये जायेंगे। सम्पादकगण चाहें, तो अपने निजी सुझाव के साथ एक जनमत-सर्वेक्षण करवा कर उसके परिणाम भी संलग्न कर सकेंगे। इसके अलावे, सोशल-मीडिया पर भी एक सर्वेक्षण करवाया जा सकता है।
प्रस्तुत घोषणापत्र की बातों के अलावे किसी और मुद्दे पर निर्णय लेते समय प्रधानमंत्री के लिए मंत्री-परिषद के 14 में से कम-से-कम 9 सदस्यों (दो-तिहाई) की सहमति लेना अनिवार्य होगा।
इस मंत्री-परिषद को सिर्फ ‘परिषद’ कहा जा सकता है।
मंत्री-सभाः परिषद के सदस्यगण अपने-अपने विषय/क्षेत्र से जुड़े 5 सहयोगी चुनेंगे। इन पाँच सहयोगियों में से किसी एक को वे अपना उत्तराधिकारी भी नामित करेंगे। परिषद के सदस्य स्वयं देश के जिस अंचल से आयेंगे, उस अंचल को छोड़कर बाकी पाँच अंचलों से एक-एक सहयोगी को वे चुनेंगे। (प्रस्तुत घोषणापत्र के अध्याय- 19 में देश के कुल छह अँचलों की बात कही गयी है— उत्तर-पूर्वांचल, पूर्वांचल, पश्चिमांचल, उत्तरांचल, दक्षिणांचल और मध्यांचल।) परिषद के सदस्यों से यह अपेक्षा की जायेगी कि वे अपने कम-से-कम तीन सहयोगियों की सहमति से ही कोई निर्णय लेकर उसे प्रधानमंत्री तक पहुँचायें।
परिषद के 70 सहयोगियों के समूह को मंत्री-सभा नाम दिया जायेगा और इसे सिर्फ ‘सभा’ कहा जा सकेगा।
जटिल एवं महत्वपूर्ण मामलों पर विचार-विमर्श ‘परिषद’ एवं ‘सभा’ के संयुक्त अधिवेशनों में हुआ करेगा।
संयुक्त अधिवेशन के दौरान दो-तिहाई— यानि 56— सदस्य मिलकर प्रधानमंत्री के किसी निर्णय को ‘वीटो’ भी कर सकेंगे, बशर्ते कि वह निर्णय प्रस्तुत घोषणापत्र की बातों से बाहर का हो।
परिषद/सभा के सदस्यों से अपेक्षाः परिषद/सभा के सदस्यों से यह अपेक्षा रखी जायेगी कि वे प्रस्तुत घोषणापत्र और निम्न धारणाओं या विचारधाराओं के प्रति अपनी सहमति एवं प्रतिबद्धता व्यक्त करेंगेः-
1. वर्तमान ‘औपनिवेशिक’ व्यवस्था को हटाकर इसके स्थान पर एक मौलिक एवं भारतीय व्यवस्था कायम करना।
2. नयी कायम होने वाली व्यवस्था को नेताजी सुभाष और शहीद भगत सिंह के विचारों/सपनों के अनुरूप बनाना।
3. शोषण, दोहन और उपभोग पर आधारित वर्तमान अर्थनीति के स्थान पर समता, पर्यावरण-मित्रता और उपयोग पर आधारित अर्थनीति को अपनाना।
4. भारतीय श्रमशक्ति, भारतीय प्रतिभा और भारतीय संसाधनों पर पूर्ण विश्वास- कि इनके बल पर भारत को खुशहाल, स्वावलम्बी और शक्तिशाली बनाया जा सकता है।
5. आवश्यकतानुसार सरकार द्वारा गरीबों, कमजोरों एवं आम लोगों के प्रति ‘फूल से भी कोमल’ और अमीरों, ताकतवरों एवं खास लोगों के प्रति ‘वज्र से भी कठोर’ रवैया अपनाते हुए नीतियाँ बनाना।
6. सत्ता के विकेन्द्रीकरण पर विश्वास- अर्थात् ‘स्थानीय स्वशासन’ को सुदृढ़ बनाना।
7. भारत के नेतृत्व में एक आदर्श विश्व-व्यवस्था की स्थापना करने के लिए प्रयास करना।
क्या यह घोषणापत्र पत्थर की लकीर है?
नहीं, इसमें आवश्यकतानुसार तथा परिस्थितियों के अनुसार बदलाव किये जायेंगे, मगर बदलाव नदी के बहते जल के समान होंगे- नदी के किनारे नहीं बदलते। प्रस्तुत घोषणापत्र में भी 1. देश की खुशहाली और 2. आम जनता की भलाई को ध्यान में रखते हुए ही बदलाव किये जायेंगे।
बदलाव जब प्रधानमंत्री करना चाहे, तो उसके लिए परिषद के 5 सदस्यों की सहमति आवश्यक होगी; और बदलाव जब परिषद या सभा के सदस्य लाना चाहें, तो संयुक्त अधिवेशन में दो-तिहाई का बहुमत आवश्यक होगा।
नयी शासन-प्रणाली कैसे कायम होगी?
आम तौर पर यह माना जाता है कि भारतीय कौम एक मुर्दा कौम है, ज्यादातर भारतीय लकीर के फकीर होते हैं, बनी-बनायी लीक से हटकर कुछ नया सोचना पाप समझते हैं और किसी बड़े परिवर्तन के लिए वे जल्दी राजी नहीं होते हैं, लेकिन चूँकि इसी देश में नेताजी सुभाष और भगत सिंह-जैसे क्रान्तिकारी भी पैदा होते हैं, इसलिए यह आशा की जा सकती है कि भारतीय नागरिकों व सैनिकों के बीच 2-4 प्रतिशत ऐसे लोग जरूर मौजूद हैं, जो जागरूक हैं, देश के वर्तमान एवं भविष्य को लेकर सोच-विचार करते हैं और जो यह मानते हैं कि देश की व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है।
यही 2-4 प्रतिशत नागरिक व सैनिक अगर चाह लें, तो 10 वर्षों के लिए उपर्युक्त शासन-प्रणाली को कायम करने का रास्ता निकाला जा सकता है— कुछ उसी तरह, जैसे बर्फ के पिघलने के बाद पानी अपना रास्ता स्वयं खोज लेता है।
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