अगर नेताजी सुभाष “दिल्ली पहुँच” जाते, तो जो तीन काम वे सबसे पहले करते, वे होते- 1. “औपनिवेशिक” शासन व्यवस्था को पूरी तरह से हटाकर समाजवादी किस्म की एक भारतीय व्यवस्था कायम करना, 2. देश के गद्दारों को राजनीति की मुख्यधारा से अलग करना (शायद वे उन्हें निर्वासित ही कर देते) और 3. भारतीय प्रशासन, पुलिस एवं सेना के सिर से “ब्रिटिश हैंग-ओवर” का भूत (अधिकारियों द्वारा जनता एवं मातहतों को गुलाम समझने की मानसिकता) उतारना। इसके बाद वे निम्न पाँच काम करते- 1. दस (या बीस) वर्षों के अन्दर हर भारतीय को सुसभ्य, सुशिक्षित, सुस्वस्थ एवं सुसंस्कृत बनाना, 2. हर हाथ को रोजगार देते हुए दबे-कुचले लोगों के जीवन स्तर को शालीन बनाना, 3. गरीबी-अमीरी के बीच की खाई को एक जायज सीमा के अन्दर नियंत्रित रखना, 4. देशवासियों को राजनीतिक रूप से इतना जागरूक बनाना कि शासन-प्रशासन के लोग उन पर हावी न हो सकें और 5. प्रत्येक देशवासी के अन्दर “भारतीयता” के अहसास को जगाना। इसके बाद ही वे नागरिकों के हाथों में “मताधिकार” का अस्त्र सौंपते। देखा जाय, तो यह अवधारणा आज भी प्रासंगिक है और इसी आधार पर यह दसवर्षीय “भारतीय राष्ट्रीय सरकार” का घोषणापत्र प्रस्तुत किया जा रहा है।

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

16. उद्योग-व्यापार

 16.1 बड़े और मँझोले व्यवसायिक/औद्योगिक घरानों को क्रमशः 7 और 5 वर्षों के लिये किसी भी नये उद्यम में पूँजी लगाने से रोक दिया जायेगा और इस अवधि में बैंकों से किसी प्रकार की ऋण या आर्थिक मदद भी इन्हें नहीं दी जायेगी।

16.2 जिन सामान्य उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादान लघु एवं कुटीर उद्योगों में सम्भव है, उनका मध्यम तथा वृहत् उद्योगों द्वारा उत्पादन/निर्माण बन्द कर दिया जायेगा।

16.3  वृहत् एवं मध्यम दर्जे के नये उद्यम (सरकारी या निजी) उन्हीं क्षेत्रों में स्थापित किये जायेंगे, जहाँ उद्योग-धन्धे नहीं हैं, या कम हैं।

16.4 किसी भी बहुराष्ट्रीय/विदेशी कम्पनी को किसी भारतीय कम्पनी में 33 प्रतिशत तक पूँजी निवेश करने की अनुमति दी जायेगी- उन्हें स्वतंत्र रूप से देश में व्यापार करने नहीं दिया जायेगा।

16.5 हालाँकि प्रवासी भारतीयों की विदेशी कम्पनियों को देश की किसी कम्पनी में 49 प्रतिशत तक पूँजी निवेश की अनुमति होगी।

16.6 बड़ी संख्या में आम लोगों को रोजगार दिलाने वाले और आम लोगों की जरूरत की वस्तुएँ/सेवाएं पैदा करने वाले उपक्रमों की 50 फीसदी हिस्सेदारी राष्ट्रीय सरकार अपने पास रखेगी तथा बाकी 50 प्रतिशत हिस्सेदारी उस उपक्रम के कार्यशीलमजदूरों एवं कर्मियों’ (अधिकारी नहीं) के बीच बाँट देगी।

16.7 जिन उपक्रमों द्वारा उत्पादित सेवाओं/वस्तुओं का आम जनता की जरूरत से सम्बन्ध नहीं है, या कम है, उनका निजिकरण किया जा सकेगा।

16.8 आम जनता के लिएआवश्यकवस्तुओं/सेवाओं पर से सभी प्रकार के कर हटा लिये जायेंगे,आरामदायकवस्तुओं/सेवाओं पर लगने वाले करों को कम कर दिया जायेगा और, इन सबकी भरपाई विलासिता’ (‘आम जनता’ के लिए विलासिता) की वस्तुओं/सेवाओं पर कर बढ़ा कर की जायेगी। (यह राष्ट्रीय सरकार का दिशा-निर्देश होगा, कराधान की व्यवस्था राज्य-सरकारें करेंगी।)

16.9 इसी प्रकार, आम जनता के लिये आवश्यक वस्तुओं की आयात पर 5 प्रतिशत, आरामदायक वस्तुओं पर 50 प्रतिशत तथा विलासिता की वस्तुओं की आयात पर 100 प्रतिशत का आयात शुल्क लगाया जायेगा। (यह शुल्क राष्ट्रीय सरकार वसूलेगी।)

16.10 विभिन्न उद्योग-धन्धों में प्रदूषण नियंत्रण, गुणवत्ता नियंत्रण तथा अनुसन्धान एवं विकास के लिये सरकार बाकायदे तीन विभाग बनायेगी और इन विभागों के माध्यम से उद्योग-धन्धों को हर सम्भव मदद देगी।

16.11 किसी भी निर्यात को- खासकर कृषि एवं बागवानी क्षेत्र से- सरकार की ओर से प्रोत्साहन या संरक्षण नहीं दिया जायेगा।

16.12 विदेशी व्यापार को सदैव सन्तुलन की स्थिति में रखा जायेगा- किसी भी देश (खासकर अमीर देश) से भारत उतनी ही रकम का आयात करेगा, जितनी का वह देश भारत से आयात करता है।

16.13 आर्थिक समानता, क्षेत्रीय आत्म-निर्भरता और उपयोगवाद’ (‘उपभोगवाद नहीं) के सिद्धान्तों को मानने वाले अर्थशास्त्रियों की एक ‘भारतीय राष्ट्रीय आर्थिक समिति’ गठित की जायेगी, जो विभिन्न उद्योग-धन्धों की उत्पादन क्षमता तथा वितरण क्षेत्र का नियंत्रण/निर्धारण करेगी। (बेशक, विभिन्न उद्योग-धन्धों के प्रतिनिधियों को लेकर एक परिसंघ का भी गठन किया जायेगा, जो राष्ट्रीय समिति को सुझाव दे सकेगी।)

16.14 विश्व बैंक (WB), अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) की नीतियों को गरीब एवं विकासशील देशों के अनुकूल बनाने की माँग की जायेगी, अन्यथा इन तीनों संस्थाओं के निर्देशों को मानने के लिये भारत बाध्य नहीं होगा।

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