अगर नेताजी सुभाष “दिल्ली पहुँच” जाते, तो जो तीन काम वे सबसे पहले करते, वे होते- 1. “औपनिवेशिक” शासन व्यवस्था को पूरी तरह से हटाकर समाजवादी किस्म की एक भारतीय व्यवस्था कायम करना, 2. देश के गद्दारों को राजनीति की मुख्यधारा से अलग करना (शायद वे उन्हें निर्वासित ही कर देते) और 3. भारतीय प्रशासन, पुलिस एवं सेना के सिर से “ब्रिटिश हैंग-ओवर” का भूत (अधिकारियों द्वारा जनता एवं मातहतों को गुलाम समझने की मानसिकता) उतारना। इसके बाद वे निम्न पाँच काम करते- 1. दस (या बीस) वर्षों के अन्दर हर भारतीय को सुसभ्य, सुशिक्षित, सुस्वस्थ एवं सुसंस्कृत बनाना, 2. हर हाथ को रोजगार देते हुए दबे-कुचले लोगों के जीवन स्तर को शालीन बनाना, 3. गरीबी-अमीरी के बीच की खाई को एक जायज सीमा के अन्दर नियंत्रित रखना, 4. देशवासियों को राजनीतिक रूप से इतना जागरूक बनाना कि शासन-प्रशासन के लोग उन पर हावी न हो सकें और 5. प्रत्येक देशवासी के अन्दर “भारतीयता” के अहसास को जगाना। इसके बाद ही वे नागरिकों के हाथों में “मताधिकार” का अस्त्र सौंपते। देखा जाय, तो यह अवधारणा आज भी प्रासंगिक है और इसी आधार पर यह दसवर्षीय “भारतीय राष्ट्रीय सरकार” का घोषणापत्र प्रस्तुत किया जा रहा है।

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

42. पर्यावरण

 नगर

42.1 प्रदूषित घोषित किये जा चुके नगरों में कल-कारखानों के निर्माण तथा मोटर-वाहनों के पंजीकरण/स्थानान्तरण पर रोक लगा दी जायेगी, जो नगरों के प्रदूषण-मुक्त होने तक जारी रहेंगी।

42.2 चम्बल के बीहड़-जैसे बंजर भूखण्डों को विकसित कर वहाँ औद्योगिक सह रिहायशी नगर बसाये जायेंगे और प्रदूषित एवं अत्यधिक जनसंख्या दवाब वाले नगरों की औद्योगिक इकाइयों को वहाँ (पर्याप्त मुआवजे के साथ) स्थानान्तरित किया जाएगा।

 

नदी

42.3 नदियों को प्रदूषणमुक्त करने के लिये नदियों के किनारे-किनारे दो पाईप-लाईन बिछाये जायेंगे, जिनके बीच-बीच में जरूरत के मुताबिक पम्पिंग स्टेशन होंगे— ये पाईप लाईन नगरों/महानगरों के मल-जल तथा औद्योगिक कचरे को समुद्र के किनारे स्थापित बड़े-बड़े परिशोधन संयंत्रों तक लेकर आयेंगे, जहाँ शोधन के बाद जल को समुद्र में छोड़ दिया जायेगा। (मूल रूप से यह सुझाव दिल्ली के श्री गोकुल चन्द कपूर द्वारा गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए दिया था।)

42.4 नदियों को प्रवाहमयी बनाने तथा इनमे अन्तर्देशीय नौवहन फिर से चालू करने के लिए नदियों से गाद की सफाई की जायेगी तथा नदियों पर नये बाँधनहीं बनने दिये जायेंगे। (पनबिजली के लिए मुख्य नदी पर बाँध बनाने के बजाय उससे नहर निकालकर या/और जलाशय बनाकर वैकल्पिक व्यवस्था की जायेगी।)

 

पर्वत

42.5 पर्वतीय, खासकर हिमालयी पर्यटन एवं तीर्थ स्थलों पर कंक्रीट निर्माण पर स्थायी रोक लगायी जायेगी और मोटर-वाहनों को इनसे कई किलोमीटर बाहर ही रोक दिया जायेगा। (विशेष: 1. निर्माण केवल स्थानीय संसाधनों से किया जा सकेगा, 2. पर्यटन और तीर्थाटन उनके लिए होना चाहिए, जो मीलों पैदल चलने तथा छोटे तम्बुओं, जिन्हें वे स्वयं पीठ पर लाद कर चलें, में रात गुजारने के काबिल हों। वैसे, सरकार की ओर से भी तम्बू-आवास, भोजन इत्यादि की व्यवस्था रहेगी; साथ ही बुजुर्गों के लिए बीच-बीच में चलने वाली पगडण्डियोंके निर्माण की कोशिश की जायेगी।)

42.6 जिन पर्यटन/तीर्थ स्थलों का पर्यावरण नाजुक स्थिति में पहुँच गया है, वहाँ 5 से 7 वर्षों के लिए पर्यटन/तीर्थाटन पर रोक लगायी जायेगी (ताकि वहाँ का वातावरण फिर से प्राकृतिकस्वरूप ग्रहण कर सके) और इस दौरान पर्यटन/तीर्थाटन से आय प्राप्त करने वाले स्थानीय लोगों के लिए वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था की जायेगी।

42.7 पर्यावरण, प्राकृतिक सौन्दर्य और जैव-विविधता को नुकसान पहुँचा रहे निर्माणों तथा मशीनीकरण की पहचान कर उन्हें समाप्त किया जाएगा।

 

वन

42.8 वन्य क्षेत्रों में रहने वाले और वनों से आजीविका पाने वाले समाज के युवाओं को वन-रक्षककी नौकरी में प्राथमिकता दी जाएगी।

42.9 देश के अलग-अलग क्षेत्रों के प्रमुख वनों को वन्य-गलियारोंसे जोड़ा जायेगा— इन कॉरिडोरों से गुजरने वाले रास्तों एवं रेलपथों को फ्लाई-ओवर या भूमिगत रूप दिया जायेगा।

42.10 जहाँ जरूरत होगी, वहाँ इस वन्य-कॉरिडोरको ही फ्लाइ-ओवर का रूप दे दिया जायेगा, जो वन्य-प्राणियों को पहाड़ीका आभास देंगे।

42.11 प्रत्येक प्रखण्ड/नगर/उप-महानगर का 33 प्रतिशत भू-भाग (पर्वतीय क्षेत्रों में 50 प्रतिशत) वृक्ष-रोपण के लिए चिन्हित किया जायेगा और लोगों को जन्माष्टमी के दिन घर के बच्चों तथा ब्याही गई बेटियों के हाथों वहाँ वृक्ष का पौधा रोपने और बड़े होने तक उनकी देख-भाल करने के लिए कहा जाएगा। (विशेष: 1. रोपे गए पौधों का बाकायदे पंजीकरण होगा और पौधे के बड़े होने पर उसके फलों पर उस परिवार का ही अधिकार होगा— जमीन भले सरकारी हो 2. वास्तव में, जन्माष्टमी का पर्व वर्षाकाल की समाप्ती के समय आता है, जो पौधा रोपण के लिए उपयुक्त होता है।)

42.12 सड़कों/रेलपथों के किनारे वृक्ष-रोपण (स्थानीय किस्म के फल, फूल, छायादार वृक्ष) के लिए बाकायदे मालियों की नियुक्ति की जायेगी और चूँकि वृक्ष-रोपण के दौरान फलदार वृक्ष भी बड़ी संख्या में लगाये जायेंगे, इसलिए भविष्य में माली इन वृक्षों से अतिरिक्त आय भी प्राप्त कर सकेंगे।

 

पशुधन

42.13 दुधारू एवं वाहक पशुओं के कत्ल पर और यंत्रचालित कत्लगाहों पर पाबन्दी लगायी जायेगी। (बेशक, यंत्रचालित कत्लगाहों को दुग्ध-इकाईयों में बदलने के लिये पर्याप्त अनुदान दिये जायेंगे।)

42.14 देशभर में एक-दो को छोड़कर शेष सभी गोल्फ मैदानोंको चारागाह सह गौशाला में बदल दिया जायेगा।

42.15 इन्हीं गौशालाओं में पशु अस्पताल भी बनवाये जायेंगे, जहाँ बीमार एवं बूढ़े पशुओं को बाकायदे खरीदकर रखा जाएगा और उनकी सेवा की जाएगी।

 

पॉलिथीन

42.16 प्रकृति में क्षय होने लायक प्लास्टिक की खोज होने तक पॉलिथन की थैलियों के उत्पादन पर प्रतिबन्ध लगाया जायेगा और इसके स्थान पर कपास और जूट-जैसे प्राकृतिक रेशों से बनने वाली थैलियों को प्रचलन में लाया जायेगा। (जाहिर है, एक तरफ राष्ट्रीय सरकार प्रकृति में क्षय होने लायक पॉलिथीन की खोज पर शोध करवायेगी, तो दूसरी तरफ इनकी थैलियों का उत्पादन करने वाली फैक्ट्रियों को व्यवसाय बदलने के लिए अनुदान देगी।)

 

ग्रीन हाऊस गैस

42.17 ग्रीन-हाऊसगैसों को बढ़ाने वाले उद्योगों तथा उपकरणों की संख्या पहले स्थिर की जाएगी, बाद में इनमे कमी लायी जाएगी— इनके स्थान पर प्रकृतिमित्र विकल्पों का विकास किया जा सकता है।

 

विस्थापन

42.18 विकास के नाम पर या किसी भी नाम पर सरकार जनता को विस्थापित नही करेगी; उल्टे, विस्थापित लोगों को उनके मूल निवास स्थान पर बसाने की कोशिश करेगी।

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