अगर नेताजी सुभाष “दिल्ली पहुँच” जाते, तो जो तीन काम वे सबसे पहले करते, वे होते- 1. “औपनिवेशिक” शासन व्यवस्था को पूरी तरह से हटाकर समाजवादी किस्म की एक भारतीय व्यवस्था कायम करना, 2. देश के गद्दारों को राजनीति की मुख्यधारा से अलग करना (शायद वे उन्हें निर्वासित ही कर देते) और 3. भारतीय प्रशासन, पुलिस एवं सेना के सिर से “ब्रिटिश हैंग-ओवर” का भूत (अधिकारियों द्वारा जनता एवं मातहतों को गुलाम समझने की मानसिकता) उतारना। इसके बाद वे निम्न पाँच काम करते- 1. दस (या बीस) वर्षों के अन्दर हर भारतीय को सुसभ्य, सुशिक्षित, सुस्वस्थ एवं सुसंस्कृत बनाना, 2. हर हाथ को रोजगार देते हुए दबे-कुचले लोगों के जीवन स्तर को शालीन बनाना, 3. गरीबी-अमीरी के बीच की खाई को एक जायज सीमा के अन्दर नियंत्रित रखना, 4. देशवासियों को राजनीतिक रूप से इतना जागरूक बनाना कि शासन-प्रशासन के लोग उन पर हावी न हो सकें और 5. प्रत्येक देशवासी के अन्दर “भारतीयता” के अहसास को जगाना। इसके बाद ही वे नागरिकों के हाथों में “मताधिकार” का अस्त्र सौंपते। देखा जाय, तो यह अवधारणा आज भी प्रासंगिक है और इसी आधार पर यह दसवर्षीय “भारतीय राष्ट्रीय सरकार” का घोषणापत्र प्रस्तुत किया जा रहा है।

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

46. तीव्र एवं सस्ती न्यायिक प्रक्रिया

 46.1 राष्ट्रपति महोदय के विरुद्ध अभियोग लाने से पहले विधायिका प्रमुख (प्रधानमंत्री), न्यायपालिका प्रमुख (सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश) और कार्यपालिका प्रमुख (मुख्य चुनाव आयुक्त को कार्यपालिका प्रमुख का दर्जा दिया जाएगा— क्रमांक- 54.1) की सहमती अनिवार्य होगी; इसी प्रकार, इन तीनों प्रमुखों के विरुद्ध अभियोग लाने से पहले राष्ट्रपति महोदय की अनुमति अनिवार्य होगी— बाकी इस देश में किसी के भी खिलाफ अभियोग लाने/मुकदमा शुरू करने से पहले किसी से भी, किसी भी किस्म की, अनुमति या सहमती लेने की जरूरत नही रहेगी।

46.2 किसी भी व्यक्ति को उसके जीवनकाल में अधिकतम 3 बार जमानत दी जा सकेगी— बेशक, यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर करेगा कि वह अभियुक्त को जमानत पाने के योग्य मानता है या नहीं।

46.3 अग्रिमजमानत की प्रथा समाप्त की जायेगी।

46.4 न्यायाधीशों के पास फर्जीमुकदमों तथा (मुकदमों को लटकाने के उद्देश्य से उठाये जाने वाले) गौणमुद्दों को खारिज करने का विवेकाधिकारहोगा।

46.5 किसी भी मुकदमे में सिर्फ और सिर्फ यह देखा जायेगा कि अभियुक्त दोषी है या नही,अन्यान्य मुद्दों पर अदालत का समय नष्ट नहीं होने दिया जाएगा।

46.6 जहाँ सबूत पक्के नहीं होंगे, गवाह संदिग्ध होंगे, या शासन/प्रशासन/पुलिस की ओर से अभियुक्त को बचाने के प्रयास का सन्देह होगा, वहाँ न्यायालय परिस्थितिजन्य साक्ष्योंके आधार पर फैसले लेने के लिए स्वतंत्र होंगे।

46.7 जिला न्यायालय के समान प्रखण्ड स्तर पर प्रखण्ड न्यायालय स्थापित किये जायेंगे— दोनों का स्तर बराबर होगा और दोनों ही उच्च न्यायालय के अधीन होंगे।

46.8 विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, सेना और अर्द्धसैन्य बलों के अन्दरूनी मामलों की सुनवाई के लिए अलग से राजकीय अदालतका गठन किया जायेगा, जिसमें इन सबके लिए अलग-अलग प्रकोष्ठ होंगे।

46.9 सभी अदालतें 90 दिनों के अन्दर किसी एक मामले को निपटायेगी; जिन मामलों में ऐसा सम्भव नही होगा, उन्हें अन्तरिम फैसले, सुझाव या सिफारिश के साथ 91वें दिन उच्चतर अदालत में स्थानान्तरित कर दिया जायेगा।

46.10 आम तौर पर कोई भी उच्चतर अदालत— सर्वोच्च न्यायालय भी— अपने अधीनस्थ अदालतों में चल रहे मामलों में 90 दिनों तक दखल नही दे सकेगी— बहुत गम्भीर कोई मामला होने पर अपवाद स्वरूप दखल दिया जा सकेगा।

46.11 दो साल से अधिक पुराने मामलों को निपटाने के लिए 5-5 न्यायाधीशों की न्यायिक पंचायतोंका गठन किया जाएगा, जिसमें मामले के सभी पक्षोंसे सीधी बातचीतके बाद सामान्य विवेकसे निर्णय लिये जायेंगे। (न्यायिक पंचायतों के लिए अवकाशप्राप्त न्यायाधीशों की भी सेवा ली जा सकेगी।)

46.12 कुछ गम्भीर किस्म के मामलों— जैसे, राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, मादक द्रव्य व्यापार, पर्यावरण-संरक्षण इत्यादि— के लिए त्वरित न्यायालयहोंगे।

46.13 सम्मनों की अवहेलना, (मजिस्ट्रेट के सामने दिये गये) बयान से मुकरना और फरारी को दण्डनीय अपराध बनाया जाएगा।

46.14 जनता (मुवक्किल) से फीस न लेने वाले और इस आशय का शपथपत्र दाखिल करनेवाले वकीलों को सरकारी वेतन दिया जाएगा। (वकील जब चाहें, सरकारी वेतन छोड़कर फीस लेना शुरू कर सकेंगे।)

46.15 अलग से कोई विस्तृत दण्ड-संहिता नहीं होगी, बल्कि संविधान में न्याय एवं मानवाधिकार आदि से सम्बन्धित जो सार्वभौमिक सिद्धान्त दर्ज होंगे, उन्हें ही कसौटी मानते हुए न्यायाधीशगण न्याय करेंगे।

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