अगर नेताजी सुभाष “दिल्ली पहुँच” जाते, तो जो तीन काम वे सबसे पहले करते, वे होते- 1. “औपनिवेशिक” शासन व्यवस्था को पूरी तरह से हटाकर समाजवादी किस्म की एक भारतीय व्यवस्था कायम करना, 2. देश के गद्दारों को राजनीति की मुख्यधारा से अलग करना (शायद वे उन्हें निर्वासित ही कर देते) और 3. भारतीय प्रशासन, पुलिस एवं सेना के सिर से “ब्रिटिश हैंग-ओवर” का भूत (अधिकारियों द्वारा जनता एवं मातहतों को गुलाम समझने की मानसिकता) उतारना। इसके बाद वे निम्न पाँच काम करते- 1. दस (या बीस) वर्षों के अन्दर हर भारतीय को सुसभ्य, सुशिक्षित, सुस्वस्थ एवं सुसंस्कृत बनाना, 2. हर हाथ को रोजगार देते हुए दबे-कुचले लोगों के जीवन स्तर को शालीन बनाना, 3. गरीबी-अमीरी के बीच की खाई को एक जायज सीमा के अन्दर नियंत्रित रखना, 4. देशवासियों को राजनीतिक रूप से इतना जागरूक बनाना कि शासन-प्रशासन के लोग उन पर हावी न हो सकें और 5. प्रत्येक देशवासी के अन्दर “भारतीयता” के अहसास को जगाना। इसके बाद ही वे नागरिकों के हाथों में “मताधिकार” का अस्त्र सौंपते। देखा जाय, तो यह अवधारणा आज भी प्रासंगिक है और इसी आधार पर यह दसवर्षीय “भारतीय राष्ट्रीय सरकार” का घोषणापत्र प्रस्तुत किया जा रहा है।

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

29. बेसहारों के लिए

 29.1 अग्रणी स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से देश में आश्रयों की एक शृँखला (प्रत्येक जिले में एक) कायम की जायेगी, जहाँ लाचार एवं बेसहारा लोगों के लिये भोजन, वस्त्र और आवास की व्यवस्था तो रहेगी ही; उनकी क्षमता के अनुसार बागवानी, दस्तकारी तथा अन्य कुटीर उद्योगों की भी व्यवस्था रहेगी।

29.2 भिक्षावृत्ति प्रतिबन्धित की जायेगी— अर्थात भीख माँगने वालों को निकट के स्वयंसेवी आश्रय में पहुँचाया जायेगा।

29.3 इन आश्रयों में उत्पादित/निर्मित वस्तुओं की बड़ी खरीदार राष्ट्रीय सरकार, राज्य सरकारें और सरकारी कार्यालय होंगे, ताकि इन्हें आर्थिक मदद मिलती रहे।

29.4 इन आश्रयों के लिये सरकार जमीन एवं भवन उपलब्ध करायेगी, स्टाफ के रूप में अवकाशप्राप्त/बुजुर्ग नगरिकों को नौकरी पर रखा जायेगा, जबकि स्वयंसेवक के रूप में संचालन की व्यवस्था उन नौजवानों को सौंपी जायेगी, जो ‘भारतीय राष्ट्रीय नागरिक सेवाओं’ (वर्तमान में जिसे आई.ए.एस. कहते हैं) में अधिकारी बनना चाहते हैं (क्रमांक- 1.14)।

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