”भारतीय प्रायद्वीप” या “ जम्बूद्वीप“ अवधारणा
28.1 भारत भारतीय प्रायद्वीप के देशों के एक संगठन (जैसे पहले ‘सार्क’ था) का प्रस्ताव अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बाँग्लादेश, म्याँमार, कम्बोडिया, मलेशिया, इण्डोनेशिया, श्रीलंका, मालदीव, (मेहमान सदस्यों के रूप में मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम) और तिब्बत की निर्वासित सरकार के सामने रखेगा, जिसकी निम्न विशेषताएं होंगीः
(क) सभी सदस्य देश इस संस्था में 7-7 प्रतिनिधि भेजेंगे क्योंकि इस संस्था में सात ही विभाग होंगे— सभ्यता-संस्कृति, खेल-कूद, शिक्षा-दीक्षा, अर्थ-वित्त, राजनीति-कूटनीति, सैर-सपाटा और सैन्य मेल-मिलाप।
(ख) भारत के अधिकार इस संस्था में अन्य सदस्य देशों के ‘बराबर’ ही होंगे, न कि ‘बड़े भाई’-जैसे। (मसलन, मालदीव के वोट की कीमत अगर एक होगी, तो भारत के वोट के कीमत भी एक ही होगी।)
(ग) उम्मीद की जा सकती है कि जैसे-जैसे इस संस्था के कार्यक्रम सफल होंगे, वैसे-वैसे पड़ोसी देशों के साथ भारत के सम्बन्ध मधुर होंगे।
खोया भू-भाग/धरोहर
28.2 भारत ने अपने भू-भाग (पाक-अधिकृत एवं अक्षय काश्मीर) चूँकि ‘नीतिगत’ कमजोरियों के कारण खोये हैं, ‘सैन्य’ कमजोरियों के कारण नहीं, अतः इन्हें हासिल करने के लिये भी नीतियों का ही सहारा लिया जायेगा, सैन्य बल का नहीं; इसके तहत पाकिस्तान तथा चीन की जनता को प्रेरित करने का प्रयास किया जायेगा कि वह अपनी-अपनी सरकारों पर भारतीय भू-भाग भारत को वापस करने के लिये दवाब डाले।
28.3 ब्रिटिश जनता को भी प्रेरित किया जायेगा कि वह अपनी सरकार पर भारतीय ऐतिहासिक धरोहर भारत वापस भेजवाने के लिये दवाब डाले।
(टिप्पणीः उपर्युक्त दोनों कामों के लिये कूटनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों, साहित्यकारों की बाकायदे एक समिति गठित की जायेगी।)
तिब्बत/अन्य प्रताड़ित देश
28.4 भारत तिब्बत की आजादी का नैतिक समर्थन करेगा और धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) स्थित वहाँ की निर्वासित सरकार को राजकीय सम्मान देगा; इसी प्रकार, ‘दियेगो-गार्सिया’ को मॉरिशस के हाथों सौंपे जाने का समर्थन करेगा; इसके अलावे, विश्व में कहीं भी (खासकर अफ्रिका और दक्षिण अमेरिका में) साम्राज्यवादी अवशेष या नव-साम्राज्यवादी हस्तक्षेप के खिलाफ संघर्षरत देश को भारत अपना नैतिक समर्थन देगा।
रूस जापान और जर्मनी
28.5 रुस, जापान और जर्मनी— दुनिया के ये तीन राष्ट्र भारत के भरोसेमन्द साथी साबित होंगे (अतीत में भी साबित हुए हैं) और इन तीनों देशों के नागरिक भारत को पसन्द करते हैं— इस बात में शायद ही किसी भारतीय को सन्देह होगा; अतः आपात्कालीन परिस्थितियों में एक-दूसरे को हर प्रकार की सहायता (सैन्य-सहायता सहित) देने के वचन के साथ भारत इन तीनों राष्ट्रों के साथ एक दीर्घकालिक या पूर्णकालिक सन्धि करेगा। (यह सम्बन्ध बराबरी का होगा।)
28.6 द्वितीय विश्वयुद्ध के दिनों में जर्मनी ने ‘इण्डियन लीजन’ और ‘फ्री इण्डिया सेण्टर’ पर तथा जापान ने ‘आज़ाद हिन्द फौज़’ और ‘आरज़ी हुकूमत-ए-आज़ाद हिन्द’ पर जो खर्च किये थे, उन्हें वापस लौटाने की पेशकश भारत इन दोनों देशों के सामने रखेगा— क्योंकि नेताजी सुभाष ने ऐसा वादा किया था।
नेपाल और मॉरिशस
28.7 नेपाल और मॉरिशस के राजदूतों के प्रति भारत ‘आत्मीयता’ की भावना रखेगा और इन दोनों देशों के राजदूतों को राष्ट्रीय संसद की कार्यवाही में शामिल होने और यहाँ अपनी बात रखने का विशेष अधिकार प्रदान करेगा।
‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ की वित्तीय स्वतंत्रता
28.8 अमीर सदस्य राष्ट्रों पर संयुक्त राष्ट्र संघ की वित्तीय निर्भरता को समाप्त करने के लिये ‘अन्तर्राष्ट्रीय करों’ की व्यवस्था करने वाले सुझाव का भारत समर्थन करेगा और अन्यान्य सदस्य राष्ट्रों को भी इसके लिये तैयार करेगा। (जिन विषयों पर अन्तर्राष्ट्रीय कर लगाने का सुझाव है, वे इस प्रकार हैं: अन्तरराष्ट्रीय व्यापार, अन्तरराष्ट्रीय डाक एवं दूरसंचार, अन्तरराष्ट्रीय यात्रा एवं पासपोर्ट, हथियारों की खरीद-बिक्री, अन्तरराष्ट्रीय जलमार्गों का इस्तेमाल, गहरे समुद्र में उत्खनन, गहरे समुद्र में मछलियाँ पकड़ना और अन्तरिक्ष का इस्तेमाल।)
अमीर राष्ट्रों/उनके कोषों से स्वतंत्रता
28.9 भारत दुनिया के गरीब एवं विकासशील देशों के नाम यह अपील जारी करेगा (बेशक, इस दिशा में प्रयास भी करेगा) कि वे एक-दूसरे का सहारा बनें, अमीर देशों तथा उनके नियंत्रण वाले कोषों से ऋण न लें, लिये जा चुके ऋण को चुकाने से मना कर दें और आपसी योगदान से खुद का एक कोष तैयार करें।
28.10 जाहिर है, भारत स्वयं किसी अमीर राष्ट्र से आर्थिक मदद नहीं लेगा, उनके नियंत्रण वाले कोषों से ऋण नहीं लेगा और लिये जा चुके ऋण को या तो चुकाने से मना कर देगा, या फिर, विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों के काले धन का इस्तेमाल इन ऋणों को चुकाने में करेगा। (अगर वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ को अपना पैसा वापस चाहिए, तो उन्हें ‘टैक्स-हेवेन’ देशों पर खुद ही दवाब बनाना होगा कि वे भारतीयों द्वारा जमा किया गये काले धन की पाई-पाई भारत को वापस करें।)
वैश्विक आतंकवाद
28.11 आतंकवादियों के लायक हल्के स्वचालित हथियार तथा विस्फोटक बनाने वाली फैक्ट्रियों पर ताला लगाने या इनके उत्पादन एवं वितरण को पारदर्शी बनाने के लिये भारत संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव लाने तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर एक ”जन“-आन्दोलन शुरू करने का प्रयत्न करेगा।
28.12 वैश्विक आतंकवाद के खात्मे के लिए अन्तरराष्ट्रीय कमाण्डो बल, गुप्तचर संस्था तथा त्वरित न्यायालय के ‘एकीकृत कमान’ के गठन का प्रस्ताव भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने रखेगा।
28.13 भारत स्वयं उन देशों के साथ ‘प्रगाढ़’ सम्बन्ध नहीं रखेगा, जो किसी भी कारण से वैश्विक आतंकवाद को प्रश्रय देते हों— अन्तरराष्ट्रीय कूटनीति के लिहाज से जितना अनिवार्य होगा, सिर्फ उतना ही ‘औपचारिक’ सम्बन्ध भारत ऐसे देशों के साथ रखेगा।
विशेष नीतियाँ
28.14 चीन, पाकिस्तान— कुछ हद तक बाँग्लादेश भी— की सरकारें (ध्यान रहे, यहाँ ‘सरकारों’ का जिक्र हो रहा है, ‘नागरिकों’ का नहीं) कभी-कभी भारत के लिए खास किस्म की समस्याएं पैदा करती हैं, इनकी काट के लिए भारत भी कुछ खास रणनीतियाँ तथा कार्ययोजनाएं बनायेगा, उन सबका जिक्र इस घोषणापत्र में नहीं किया जा सकता; जिनका जिक्र किया जा सकता है, वे निम्न प्रकार से हैं:
(क) लेह से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक (बेशक, भारतीय भू-भाग पर— नेपाल, भूटान को छोड़कर) ”नया तिब्बत“ देश बसाया जायेगा; अर्थात् तिब्बतियों को इस लम्बे गलियारे में बसाया जायेगा; साथ ही, ‘भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल’ में तिब्बती युवाओं को— थोड़ी संख्या में नेपाली-भूटानी युवाओं को भी— शामिल किया जायेगा।
(ख) भारतीय, पाकिस्तानी और बाँग्लादेशी नागरिकों के नाम यह सन्देश जारी किया जायेगा कि वे 14-15 अगस्त’ 2047 की मध्यरात्रि को इन तीनों देशों का एक ”महासंघ“ (जहाँ सीमाओं पर सैनिकों का जमावड़ा नहीं हो, बिना पासपोर्ट-वीसा के (केवल नागरिक पहचानपत्र के बल पर) आवागमन हो, एक ही मुद्रा चले इत्यादि) बनाने पर विचार करें।
अन्तरराष्ट्रीय सन्धियाँ
28.15 भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी निर्देशों का तो पालन करेगा, मगर पिछली सरकारों द्वारा की गयी अन्यान्य अन्तरराष्ट्रीय सन्धियों की समीक्षा करेगा और जो सन्धी राष्ट्रहित में नहीं होगी, उनसे विनम्रतापूर्वक एवं क्षमायाचना सहित बाहर निकल आयेगा।
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