44.1 संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशों के अनुसार भारतीय राष्ट्रीय— मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग एवं बाल आयोग का पुनर्गठन किया जायेगा और राष्ट्रीय सरकार की ओर से इनमें न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हुए इन्हें न्यायिक शक्तियाँ प्रदान की जायेंगी। (सामाजार्थिक रूप से कमजोर समुदायों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए भी एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया जा सकता है, अन्यथा मानवाधिकार आयोग ही इस काम को देख सकता है।)
44.2 उपर्युक्त तीनों आयोगों को निम्न तीन प्रकार के मामलों में घटनास्थल पर ही अस्थायी न्यायालय स्थापित कर दोषियों को सजा देने का अधिकार प्रदान किया जायेगाः
(क) महिलाओं एवं बच्चों पर अत्याचार,
(ख) सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर लोगों पर अत्याचार और
(ग) पुलिस, प्रशासन या सेना/अर्द्धसैन्य बल द्वारा अत्याचार।
44.3 जरूरत पड़ने पर जिला स्तर की प्रशासन एवं पुलिस व्यवस्था को ”अधिगृहित“ करने का विशेषाधिकार इस न्यायालय के पास होगा। (जाहिर है, जब पुलिस-प्रशासन के लोग इस न्यायालय के साथ सहयोग नहीं करेंगे, तभी ऐसी स्थिति पैदा होगी।)
44.4 अगर मामला सेना/अर्द्धसैन्य बल से जुड़ा हो और सम्बन्धित सैन्य/अर्द्धसैन्य इकाई के कमान स्तर से सहयोग न मिले, तो यह न्यायालय उस सैन्य इकाई की कमान को भी अधिगृहीत कर सकेगा।
44.5 जरूरत पड़ने पर एक ज्यूरी (जिसमे सामाजिक कार्यकर्ता, मनोविज्ञानी, पुलिस अधिकारी, वकील, डॉक्टर तथा पत्रकार के रूप में 6 महिला और 6 पुरूष सदस्य होंगे) का भी गठन यह न्यायालय कर सकेगा।
44.6 इन अदालतों में भुक्तभोगी, अभियुक्त, चश्मदीद गवाह और स्थानीय लोगों से सीधी पूछ-ताछ की जायेगी— पेशेवर वकीलों को किसी का पक्ष नहीं रखने दिया जाएगा।
44.7 अभियुक्त नामजद न होने पर ”अज्ञात“ दोषी के नाम सजा सुनायी जायेगी, जो अभियुक्त के पकड़े जाने या आत्म-समर्पण करने तथा दोष सिद्ध होने के बाद अपने-आप लागू हो जायेगी।
44.8 ”फरारी“ के लिए अलग से सजा सुनायी जायेगी।
44.9 पिछले 20 वर्ष तक के पुराने उपर्युक्त किस्म के मामलों को फिर से खोलने, उनकी समीक्षा करने, फिर से सुनवाई करने और सजा देने या सजा बढ़ाने का अधिकार भी इन आयोगों के पास होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें