15.1 जहाँ तक सम्भव होगा— बड़े पैमाने पर कृषि योग्य जमीन का किसी भी गैर-कृषि काम के लिये इस्तेमाल नहीं होने दिया जायेगा। (रिहायशी या औद्योगिक नगर बसाने के लिये बंजर भूखण्डों को विकसित किया जायेगा।)
15.2 कृषि क्षेत्र का रकबा बढ़ाने की अगर जरूरत पड़ी, तो हवाई अड्डे-जैसे विभागों द्वारा अधिगृहीत जमीनों पर— पर्याप्त सावधानियों के साथ— खेती (कम-से-कम दलहन-तिलहन-जैसी फसलों की) शुरू करवायी जा सकती है।
15.3 पाँच-सात वर्षों की योजना बनाकर रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का उत्पादन, आयात एवं प्रयोग बन्द करने का प्रयास किया जायेगा— इनके स्थान पर जैविक/प्राकृतिक उर्वरक एवं कीटनाशकों तथा कीट नियंत्रण प्रणालियों का तेजी से विकास किया जायेगा।
15.4 अनाजों की सरकारी खरीद के लिए राष्ट्रीय सरकार और राज्य सरकार की ओर से दो समानान्तर व्यवस्था कायम की जायेगी, जिसका विस्तृत विवरण परिशिष्ट- ‘ऊ’ में है।
15.5 भारतीय कृषि के पर किसी भी अन्तरराष्ट्रीय समझौते को लागू नहीं होने दिया जायेगा, विदेशों में विकसित किसी बीज का इस्तेमाल देश में नहीं होने दिया जायेगा और कृषि-उत्पादों की आयात-निर्यात तथा कृषि क्षेत्र में भारी मशीनीकरण को सरकार की ओर से प्रोत्साहन या बढ़ावा नहीं दिया जायेगा।
15.6 प्रखण्ड स्तर पर कृषि वैज्ञानिकों की नियुक्ति की जायेगी, जो किसानों, पशुपालकों, मत्स्यपालकों को जरूरी सलाह देंगे।
15.7 प्रखण्ड की सभी ग्राम पंचायतों को मिलाकर एक सहकारी समिति का रूप दिया जायेगा, जो प्रखण्ड के सरकारी अधिकारियों तथा कृषि वैज्ञानिकों के साथ मिलकर कृषि उत्पादों की खरीद, उनका भण्डारण, प्रसंस्करण, विपणन की व्यवस्था करेगी और साथ ही, अन्य सामुदायिक कार्यों, जैसे- जल एवं मृदा संरक्षण, वृक्ष-रोपण, कीट नियंत्रण, बीज, उर्वरक, सिंचाई और परिवहन व्यवस्था- का संचालन भी करेगी।
भारतीय राष्ट्रीय भू-सर्वेक्षण
15.8 नये सिरे से और नये ढंग से समस्त कृषि भूमि की नाप-जोख, चकबन्दी, वर्गीकरण तथा पुनर्वितरण किया जायेगा, जिसके लिए निम्न विधि अपनायी जायेगीः
(क) जिन विन्दुओं पर अक्षांश-देशान्तर रेखाएं प्रत्येक डिग्री पर एक-दूसरे को काटती हैं, कृत्रिम उपग्रहों की सहायता से वह जगह निर्धारित कर वहाँ 21 फीट ऊँचे स्तम्भ स्थापित किये जायेंगे; आगे, ऐसे दो स्तम्भों के बीच 15 फीट ऊँचे, फिर उनके बीच 11 फीट, फिर उनके बीच 7 फीट, और फिर, उनके बीच 5 फीट ऊँचे स्तम्भ स्थापित करते हुए कृषि भूमि के चौकोर टुकड़े बनाये जायेंगे और फिर नाप-जोख उन स्तम्भों से की जायेगी। (कृषि भूमि की माप की यह एक नयी इकाई हो सकती है, जिसे ‘वर्ग’ या ‘वर्गा’ कहा जा सकता है- अन्यान्य सभी इकाईयों का उपयोग सरकार की तरफ से बन्द किया जा सकता है। स्तम्भों पर ‘राष्ट्रचिह्न’ बनाते हुए इन्हें ‘अशोक स्तम्भ’ नाम दिया जा सकता है।)
(ख) नाप-जोख एवं वर्गीकरण के बाद चकबन्दी करते हुए कृषि भूमि का पुनर्वितरण किया जायेगा और इस दौरान 6 एकड़ तथा इससे अधिक जमीन रखने वाले न्यासों, परिवारों, व्यक्तियों से उनकी कुल जमीन का छठा भाग (लगभग 16.6 प्रतिशत भाग) ले लिया जायेगा, जिसे बाद में भूमिहीन एवं सीमान्त किसानों, खेतिहर मजदूरों और दस्तकारों के बीच बाँटा जायेगा।
भारतीय राष्ट्रीय जलाशय परियोजना
15.9 देश के सभी जलाशयों का जीर्णोद्धार किया जायेगा और बरसाती पानी के बहाव तथा जमीन की ढाल का अध्ययन कर नये जलाशय बनवाये जायेंगे, जिसकी निम्न विशेषताएं होंगीः
(क) जलाशय बड़े हों या छोटे, उन सभी का आकार ‘स्वस्तिक’-जैसा होगा, बनावट सीढ़ीदार होगी— जैसा कि पुराने समय के जलाशय होते थे।
(ख) इन सभी जलाशयों को भूमिगत नहरों— पाईप लाईन— के माध्यम से पड़ोसी चार जलाशयों से और फिर अन्त में क्षेत्र की सभी छोटी-बड़ी नदियों एवं झीलों से जोड़ दिया जायेगा। (अर्थात् प्रत्येक जलाशय किसी-न-किसी तरह से ‘गंगा नदी’ से जरूर जुड़ा रहेगा!)
(ग) इन जलाशयों से सिंचाई करने की व्यवस्था तो होगी ही, भूमिगत नहरों में भी बीच-बीच में विशेष ‘आउटलेट’ बनाये जायेंगे, जहाँ से सिंचाई की जा सकेगी।
(घ) इन जलाशयों’ का उपयोग न केवल जन-स्नानागार के रूप में हो सकेगा, बल्कि यहाँ अन्यान्य सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक अनुष्ठान भी आयोजित किये जा सकेंगे। (इससे इन जलाशयों की स्वच्छता एवं पवित्रता बनी रहने की आशा की जा सकती है)
(ङ) देखा जाय, तो यह एक ”बहुद्देशीय“ परियोजना होगी, जो सिंचाई एवं जन स्नानागार के अलावे पेयजल मुहैया करायेगी; बाढ़ व सुखाड़ को नियंत्रित करेगी; भू-जलस्तर को बनाये रखेगी (जलाशयों के बीचों-बीच ‘डीप बोरिंग’ कर भू-जल को रीचार्ज करने की व्यवस्था की जा सकती है) तथा बड़ी मात्रा में मीठे पानी को समुद्र में मिल जाने से रोकेगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें